अब हम अविगत से चलि आये, कोई भेद मरम न पाये ॥
ना हम जन्मे गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाये।
काशी शहर जलहि बीच डेरा, तहां जुलाहा पाये॥
हते विदेह देह धरि आये, काया कबीर कहाये।
बंश हेत हंसन के कारन, रामानन्द समुझाये॥
ना मोरे गगन धाम कछु नाही, दीसत अगम अपारा।
शब्द स्वरूपी नाम साहब का, सोई नाम हमारा॥
ना हमरे घर मात पिता है, नाहि हमरे घर दासी।
जात जोलाहा नाम धराये, जगत कराये हाँसी॥
ना मोरे हाड़ चाम ना लोहू, हां सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, कहैं कबीर अविनाशी॥
कबीर साहब सभी सन्तों में अद्भुत, बेजोड़ हैं, निराले हैं। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनमें जरा भी उधार नहीं है।
उनके विचार पूर्णतया मौलिक स्वाजुभूति पर आधारित है। उन्होंने किसी लिखा लिखी की बात नही की। सदैव आँखों देखी सांच का ही वर्णन किया है। उन्होंने पहले सत्य को देखा है, जाना है, जिया है, सहा है तभी कहा है। सदगुरू अपना शाख्र स्वयं लेकर आते हैं, किसी शाख्र के मोहताज नहीं होते हैं । वे इन्द्रियातीत, अविनाशी अखण्ड सत्य के दृष्टा हैं। ‘ तन में, मन में , नयन में , उनके रोम-रोम से सत्य ही चरितार्थ होता है।
वे सत्य स्वरूपी हैं। सत्य को बिना लाग लपेट के दो टूक कहने का उनका ढंग निराला है। खरी-खरी कहने में दुनिया में उनका कोई सानी नहीं है। ऐसी निर्भयता, ऐसा अदम्य साहस दुनिया में और किसी का नहीं है।“ मैं तो एक-एक कर जाना”, एक ही सत्य पुरूष की सहज भक्ति को सहज सरल भाषा में लोक कण्ठ तक पहुँचाने का उन्होंने अदभुत कार्य किया है। उनकी विमल वाणी उलटवासियों ने जन सामान्य में ज्ञानाम्नि का चमत्कार पैदा कर दिया था। कबीर साहब चाहते थे कि सभी मनुष्य एक हो, सारी वसुधा एक हो।
उनकी रचना का उद्देश्य मनुष्य को निर्द्रद्र, कोलाहल शून्य, दुख रहित जीवन की अनुभूति कराना है। चार दाग से न्यारे कबीर साहब की कथनी-करनी, रहनी-गहनी, आचार-विचार में कोई भेद नहीं था, आचार-विचार की शुद्धता के कारण ही उन्होंने शरीर रूपी चादर को ज्यों का त्यों धर दिया था। इसीलिये उनकी वाणी में इतना ओज है और विश्वसनीयता है। “मैं रोऊँ इस जगत को ”” सारे संसार की पीड़ा उनकी निज की पीड़ा बन गयी थी । सामाजिक कुरीतियों , अन्धविश्वास, अधर्म और पाखण्ड के जाल से निकालकर मानव को स्वस्थ आधार भूमि प्रदान की थी, जिससे समाज में मानव अपने दिलों में घ्रणा की जगह प्रेम, हिंसा की जगह अहिंसा, भेद
की जगह अभेद और विषमता की जगह समता के मार्ग पर निर्विध्न रूप से चलकर अपने जीवन को सार्थक बना सके | महान विचारक ओशो ने कहा है कि “मनुष्य जाति के इतिहास में कबीर के सूत्र का कोई मुकाबला नहीं है। इतने सरल और सीधे, साफ और स्पष्ट वचन पृथ्वी पर कभी बोले नहीं गये हैं कबीर का एक-एक वचन हजारों शास्त्रों का सार है। गीता होगी कितनी भी कीमती लेकिन कबीर के एक शब्द में समा जाय।”” आज भारत का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी जुबान पर कबीर की कोई रचना न हो।